
रावण में कुछ अवगुण जरूर थे, लेकिन उसमें कई गुण भी मौजूद थे, जिन्हे कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उतार सकता है। यदि हम रामायण के प्रसंगों को बारीकी से पढ़ें, तो रावण न केवल महाबलशाली था, बल्कि बुद्धिमान भी था। फिर उसे सम्मान क्यों नहीं दिया जाता? कहा जाता है कि वह अहंकारी था। लेकिन यहां एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या हमारे कुछ देवी-देवता अहंकारी नहीं रहे हैं? जहां तक सवाल सीता-हरण का है तो इस घटना के पीछे रावण की बहन शूर्पणखा का हाथ था, जिससे रावण बेहद प्यार करता था। शूर्पणखा के उकसाने पर ही उसने सीता का हरण किया था। जहां तक स्त्रियों के प्रति रावण के आकर्षण की बात है तो कई ऐसी धार्मिक कथाएं हैं, जिनमें स्त्रियों पर देवताओं के मोहित होने की चर्चा है। मान्यता है कि इंद्र देवताओं के राजा है, लेकिन इंद्र का दरबार अप्सराओं से सजा रहता था। ज्ञानी और समाजसुधारक जनमानस में रावण की छवि एक खलनायक या बुरे इंसान की बनी हुई है, जबकि वह तपस्वी भी था। रावण ने कठोर तपस्या के बल पर ही दस सिर पाए थे। इंसान के मस्तिष्क में बुद्धि और ज्ञान का अथाह भंडार होता है। इसके बल पर यदि वह चाहे, तो कुछ भी हासिल कर सकता है। रावण के तो दस सिर यानी दस मस्तिष्क थे। इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि वह कितना ज्ञानी रहा होगा। लेकिन, रावण की गाथाओं को और उसके दूसरे पहलू पर ध्यान नहीं दिया गया और रावण एक अहंकारी खलनायक बनकर रह गया। यदि हम अलग-अलग स्थान पर प्रचलित राम कथाओं को जानें, तो रावण को बुरा व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है। जैन धर्म के कुछ ग्रंथों में रावण को 'प्रतिनारायण' कहा गया है।
रावण समाज सुधारक और प्रकांड पंडित था। तमिल रामायणकार 'कंब' ने उसे सद्चरित्र कहा है। रावण ने सीता के शरीर का स्पर्श तक नहीं किया, बल्कि उनका अपहरण करते हुए वह उस 'भूखंड' को ही उखाड़ लाता है, जिस पर सीता खड़ी है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि रावण जब सीता का अपहरण करने आया, तो वह पहले उनकी वंदना करता है।
मन मांहि चरण बंदि सुख माना।
महर्षि याज्ञवल्क्य ने इस वंदना को विस्तारपूर्वक बताया है। 'मां' तू केवल राम की पत्नी नहीं, बल्कि जगत जननी है। राम और रावण दोनों तेरी संतान के समान हैं। माता योग्य संतानों की चिंता नहीं करती, बल्कि वह अयोग्य संतानों की चिंता करती है। राम योग्य पुरुष हैं, जबकि मैं सर्वथा अयोग्य हूं, इसलिए मेरा उद्धार करो मां। यह तभी संभव है, जब तू मेरे साथ चलेगी और ममतामयी सीता उसके साथ चल पड़ी।
ज्योतिष और आयुर्वेद का ज्ञाता
लंकापति रावण तंत्र-मंत्र, सिद्धि और दूसरी कई गूढ़ विद्याओं का भी ज्ञाता था। ज्योतिष विद्या के अलावा, उसे रसायन शास्त्र का भी ज्ञान प्राप्त था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थीं, जिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न किए। 'रावण संहिता' में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। वह राक्षस कुल का होते हुए भी भगवान शंकर का उपासक था। उसने लंका में छह करोड़ से भी अधिक शिवलिंगों की स्थापना करवाई थी।
यही नहीं, रावण एक महान कवि भी था। उसने 'शिव ताण्डव स्त्रोत्म' की। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओं पर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जड़ी-बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था।
रावण ने राम को 'राम' बनाया
यदि रामायण या राम के जीवन से रावण के चरित्र को निकाल दिया जाए, तो सोचिए कि संपूर्ण रामकथा का अर्थ ही बदल जाएगा। स्वयं राम ने रावण के बुद्धि और बल की प्रशंसा की है। इसलिए जब रावण मृत्यु-शैय्या पर था, तब राम ने लक्ष्मण को रावण से सीख लेने के लिए कहा। उन्होंने आदेश दिया कि वह रावण के चरणों में बैठकर सीख ले। उधर युद्ध में मूचिर््छत लक्ष्मण को देख कर रावण ने चिकित्सक को बुलाने की अनुमति देते हुए कहा था, 'जहां एक ओर मृतक हमसे सम्मान और अंत्येष्टि, वहीं दूसरी ओर घायल योद्धा सहानुभूति और सेवा पाने के अधिकारी हैं।'
पूजा जाता है रावण
महाराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले में 'कोरकू' और 'गोंड' आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व 'फागुन' के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं। इसके अलावा, दक्षिण भारत के कई शहरों और गांवों में भी रावण की पूजा होती है।
Category: Devotional | Rajender Kumar Rastogi | Posted on: 24/08/2013
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Posted by: Rajender Kumar Rastogi | Posted on: 24/08/2013 | Views: 4933 |
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